अंतःकरण का स्वरूप

ebook

By Dada Bhagwan

cover image of अंतःकरण का स्वरूप

Sign up to save your library

With an OverDrive account, you can save your favorite libraries for at-a-glance information about availability. Find out more about OverDrive accounts.

   Not today
Libby_app_icon.svg

Find this title in Libby, the library reading app by OverDrive.

app-store-button-en.svg play-store-badge-en.svg
LibbyDevices.png

Search for a digital library with this title

Title found at these libraries:

Loading...

अंत: करण के चार अंग हैं : मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार| हरेक का कार्य अलग है| मन क्या है? मन ग्रंथिओं का बना हुआ है| वह ग्रंथि इस जन्म में फूटती है, उसे विचार कहा जाता है| अंत: करण का दूसरा अंग है, चित्त | चित्त का स्वभाव भटकना है| चित्त सुख खोजने के लिए भटकता रहता हैं| किंतु वह सारे भौतिक सुख विनाशी होने की वजह से उसकी खोज का अंत ही नहीं आता| जब आत्मसुख मिलता है तभी उसके भटकने का अंत आता है| बुद्धि, आत्मा की इनडायरेक्ट लाइट है | बुद्धि हमेशा संसारी मुनाफा नुक्सान बताती है| इन्द्रियों के ऊपर मन, मन के ऊपर बुद्धि, बुद्धि के ऊपर अहंकार और इन सबके ऊपर आत्मा है| बुद्धि, वह मन और चित्त दोनों में से एक का सुनकर निर्णय करती है और अहंकार अँधा होने से बुद्धि के कहे अनुसार हस्ताक्षर कर देता है| उसके हस्ताक्षर होते ही वह कार्य बाह्यकरण में होता है| अहंकार करने वाला भोक्ता होता है, वह स्वयं कुछ नहीं करता, वह सिर्फ मानता है कि मैंने किया और वह उसी समय कर्ता हो जाता है| अंत: करण की सारी क्रियाएँ मैकेनिकल हैं| इसमें आत्मा को कुछ करना नहीं होता| आत्मा तो सिर्फ ज्ञाता द्रष्टा और परमानंदी है| केवल ज्ञानीपुरुष ही अपने अंत: करण से अलग रहते हैं| आत्मा में ही रह कर उसका यथार्थ वर्णन कर सकते हैं| ज्ञानीपुरुष संपूज्य दादाश्री ने अंत: करण का बहुत ही सुन्दर और स्पष्ट वर्णन किया है|

अंतःकरण का स्वरूप