जिंदगी, बेवफा मैं नहीं

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By डॉ. तारा सिंह

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प्यार, प्रकृति, त्याग और आत्मार्पण का यह उपन्यास, 'जिन्दगी,बेवफा मैं नही', डॉ. तारा सिंह की एक ऐसी कृति है, जिसका मिसाल नहीं| इनकी रचनाओं में रम्यता के प्रति, चाहे वह प्रकृति के प्रति हो अथवा शरीर के भावुक आकर्षण हों, होश गंवा देनेवाली आवेगमयता और मिलने की आतुरता रहती है| लेखिका ने इस उपन्यास के लिए, अपनी कल्पना-उद्यान से अलग-अलग भाव से चुन-चुनकर रंगीन और सादे सुगंध वाले, निर्गंध मकरंद से भरे हुए, तथा पराग में लिपटे हुए,सभी तरह के कुसुमों को एकत्रित किया है|
इस उपन्यास में,रचनाकार का सादगी भरा व्यक्तित्व,नवीण सौन्दर्य बोध, अनूठी बिम्ब-योजना, चित्रात्मकता, ललित कल्पना शब्द-अर्थ के चमत्कृत संयोगों और रम्याद्भूत तत्वों के साथ प्रयोग अभिभूत कर देता है| सब मिलाकर डॉ. तारा द्वारा रचित यह उपन्यास, अगर मैं कहूँ, कि यह भव्य रचना,यथार्थ धरती और स्वर्ग दोनों का नैसर्गिक स्वर है, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी| कथा के आरम्भ से अंत तक, प्रकृति को जितनी छबियोँ, जितनी आकृतियोँ, जितने उपमा-उपेक्षाओं और आत्मगत संवेदनाओं, जितने बिम्बों और उक्तियों से अभिव्यक्ति प्रदान की है, किसी और की रचनाओं में मिलना असंभव रहता है|
कहते हैं, एक रचनाकार,संसार से दृष्टि हटाकर, जब व्यक्ति पर ध्यान देता है, तब वह शांत में अनंत का दर्शन करता है, और उसे भौतिक पिंड में असीम ज्योति का आभास होता है, जो कि पूर्ण सफल साहित्यकार का लक्षण है| तारा सिंह में ये सभी गुण विद्यमान हैं| यह एक सामाजिक उपन्यास है, इसमें मरुस्थल में भटकती हुई निराशा है, तो प्रेम से उत्पन्न बेवफाई भी है| मेरा आग्रह है, कि आप इसे खुद पढ़कर देखें, और आंकलन करें|

जिंदगी, बेवफा मैं नहीं